अमेरिका में ट्रंप की सख्त इमिग्रेशन पॉलिसी के बाद भारतीयों के H-1B वीजा में एक साल में ही 40 फीसदी के करीब कमी आ गई है। यूएससीआईएस के आंकड़ों के मुताबिक 2015 से अब तक H-1B वीजा की मंजूरी मिलने में 70 फीसदी की कमी आई है। वहीं एक साल में ही यह 37 फीसदी कम हो गया। भारत की पांच सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में टीसीएस के ही सबसे ज्यादा कर्मचारियों को एच-1बी वीजा मिला है। वहीं भारत की कंपनियों को कुल 4.5 हजार एच-1बी वीजा ही जारी हो सके हैं जो कि इस दशक में सबसे कम हैं।
The impact of Trump’s immigration policy is beginning to be seen, with negligible numbers of H-1B visas granted to Indians; learn what the statistics say : टीसीएस का भी रेजेक्शन रेट 7 फीसदी तक बढ़ गया है। 2024 में टीसीएस के 4 फीसदी ऐप्लिकेशन ही रद्द हुए थे। इस साल टीसीएस के 5293 कर्मचारियों को अमेरिका में अपनी नौकरी जारी रखने की अनुमति मिली है। वहीं भारत से अमेरिका जाने वाले कर्मचारियों की बात करें तो इस साल टीसीएस के केवल 846 लोगों को ही एच-1बी वीजा दिया गया है। 2024 में यह संख्या 1452 थी।
अमेरिका में भारत की टॉप आईटी कंपनियों में पहले नंबर पर टीसीएस है जिसका रिजेक्शन रेट 7 फीसदी है। इन्फोसिस का रिजेक्शन रेट 1 पर्सेंट, एचसीएल अमेरिका का 1 फीसदी, एलटीआई माइंडट्री का 1 फीसदी और विप्रो का 2 फीसदी है। अमेरिका में एच-1बी वीजा के मामले में ऐमजॉन, मेटा, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल सबसे आगे हैं।
टॉप एच-1बी वीजा पिटिशन वाली 25 कंपनियों में केवल 3 भारत की कंपनी हैं। टीसीएस के अलावा बाकी कंपनियों का रिजेक्शन रेट कम है। इसकी वजह है कि कंपनियां अब आवेदन ही कम करवा रही हैं। अमेरिका में एच-1बी वीजा की नीति को लकर एलन मस्क ने बड़ा बयान दिया।उन्होंने कहा कि भारतीयों से अमेरिका ने खूब फायदा कमाया है। मस्क ने कहा कि तकनीक और नवाचार के क्षेत्र में भारतीय अप्रवासियों की प्रतिभा ने अमेरिका को बहुत लाभ पहुंचाया। उन्होंने यह भी कहा कि वैश्विक कंपनियों में शीर्ष पदों पर भारतीय मूल के लोग हैं।


