कार्डियक इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी की डॉ. वनिता अरोड़ा ने बताया कि अभी तक लगाए जा रहे पेसमेकर में तार की समस्या होती है। इन्हें लगाने के लिए सर्जरी करनी पड़ती थी। शरीर के ऊपरी हिस्से पर बैटरी होने के कारण मरीजों को हाथों की क्रिया करने से रोका जाता था। ऐसे में इस समस्या को देखते हुए नया पेसमेकर विकसित किया गया है।
अब पेसमेकर के तार मरीजों को परेशान नहीं करेंगे। दिल्ली के एक निजी अस्पताल में 75 साल की महिला के दिल में लीडलेस पेसमेकर लगाया गया है। यह पेन की ढक्कन के बराबर है। इसका वजन भी दो ग्राम से कम है। डॉक्टरों का दावा है कि यह देश का पहला मामला है।
कार्डियक इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी की डॉ. वनिता अरोड़ा ने बताया कि अभी तक लगाए जा रहे पेसमेकर में तार की समस्या होती है। इन्हें लगाने के लिए सर्जरी करनी पड़ती थी। शरीर के ऊपरी हिस्से पर बैटरी होने के कारण मरीजों को हाथों की क्रिया करने से रोका जाता था। ऐसे में इस समस्या को देखते हुए नया पेसमेकर विकसित किया गया है। जो पेन के ढक्कन के बराबर है। इस लीडलेस पेसमेकर को एक ट्रांसवेनस (कैथेटर) आधारित प्रक्रिया के माध्यम से प्रत्यारोपित किया गया। इसमें पेसमेकर को जांघ के पास बढ़ी धमनी के रास्ते दिल तक पहुंचाया जाता है। इसे इस तरह से बनाया गया कि आसानी से लगाया जा सकें और जरूरत के आधार पर वापस उसी रास्ते निकाला जा सकें।
डॉक्टर ने कहा कि मरीज में इसे प्रत्यारोपित करने में छह घंटे का समय लगा। प्रत्यारोपण के अगले दिन मरीज को छुट्टी दे दी गई। वह पूरी तरह से ठीक है और चल-फिर रही है। जबकि पारंपरिक पेसमेकर के लिए सर्जिकल चीरा की आवश्यकता होती थी। इसकी वजह से उच्च जोखिम और संक्रमण का खतरा रहता था। वजन भी करीब 25 ग्राम का होता है। लाइफ 8 से 10 साल मानी जाती है, जबकि लीडलेस पेसमेकर की लाइफ 21 साल मानी जा रही है। इसका वजन भी दो ग्राम से कम है। डॉक्टर का दावा है कि नई तकनीक है और इसे लेकर और शोध किया जा रहा है। उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में इसकी उपलब्धता और बढ़ेगी।