जापानी इंसेफेलाइटिस और इसके लक्षण
जापानी इंसेफेलाइटिस, संक्रमित मच्छरों के काटने से फैलता है। ज्यादातर संक्रमितों में हल्के लक्षण दिखते हैं हालांकि गंभीर बीमारी वालों को बुखार, सिरदर्द और उल्टी जैसी दिक्कतें हो सकती हैं। अगर समय रहते इनपर ध्यान न दिया जाए तो इससे भ्रम, दौरे पड़ने और कोमा का खतरा भी हो सकता है। बच्चों में जापानी इंसेफेलाइटिस के कारण दौरे पड़ने जैसे लक्षण अधिक देखे जाते रहे हैं।
जापानी इंसेफेलाइटिस का खतरा
अध्ययनों में पाया गया है कि ग्रामीण इलाकों जहां स्वच्छता की कमी होती है या मच्छरों के अधिक प्रजनन वाले क्षेत्रों में इस रोग का खतरा अधिक देखा जाता रहा है। जिन स्थानों पर पहले से जापानी इंसेफेलाइटिस के मामले अधिक हैं वहां की यात्रा करने से आपमें भी इसका जोखिम बढ़ सकता है।
जापानी इंसेफेलाइटिस के मामले गर्मियों और बरसात के मौसम में काफी अधिक रिपोर्ट किए जाते रहे हैं। बच्चों में इसका खतरा अधिक होता है क्योंकि जिन क्षेत्रों में यह वायरस स्थानिक (एंडेमिक) है, वहां वयस्क आमतौर पर उम्र बढ़ने के साथ इससे प्रतिरक्षित हो जाते हैं।
मस्तिष्क को प्रभावित करती है ये बीमारी
जापानी इंसेफेलाइटिस मस्तिष्क को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। मस्तिष्क संबंधी लक्षणों के कारण कुछ लोगों में आजीवन जटिलताएं जैसे बहरापन, अनियंत्रित भावनाओं की समस्या या शरीर के एक तरफ कमजोरी जैसी दिक्कतें बनी रह सकती हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, घरों के आसपास स्वच्छता का ध्यान रखकर, पानी का जमाव न होने देने वाले उपाय करके, मच्छरों से बचाव करके इस खतरनाक रोग से सुरक्षित रहा जा सकता है।
क्या जापानी इंसेफेलाइटिस के लिए कोई वैक्सीन है?
भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार, अप्रैल, 2013 से जापानी इंसेफेलाइटिस के स्थानिक जिलों के लिए वैक्सीन उपलब्ध कराई गई है। दो खुराक वाली वैक्सीन, पहली 9 महीने की उम्र में खसरे के साथ तथा दूसरी 16-24 महीने की उम्र में डीपीटी बूस्टर के साथ दी जाती है। बच्चों को ये टीके लगवाकर उन्हें जापानी इंसेफेलाइटिस और इसके कारण होने वाली गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं से बचाया जा सकता है। जापानी इंसेफेलाइटिस के लिए रोकथाम ही सर्वोत्तम उपचार है। स्वच्छता के उपाय और मच्छरों के काटने से बचाव करके इस घातक बीमारी से बचा जा सकता है।