Sunday, April 27, 2025
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दिल्ली एम्स के शोध में खुलासा: मां के दूध से होगा ब्लैक फंगस का इलाज, कोरोना महामारी के बाद बढ़े थे मामले

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दिल्ली एम्स के माइक्रोबाॅयोलॉजी विभाग के सहयोग से बायोफिजिक्स विभाग ने शोध किया। मां के दूध में मौजूद लैक्टोफेरिन से ब्लैक फंगस का इलाज संभव हो सकता है। कोरोना महामारी के बाद तेजी से म्यूकोर्मिकोसिस के मामले बढ़े थे।  मृत्युदर 80 फीसदी तक बढ़ गई थी।

कोरोना महामारी के बाद तेजी से बढ़े ब्लैक फंगस (म्यूकोर्मिकोसिस) के इलाज में मां के दूध में मौजूद लैक्टोफेरिन नाम का प्राकृतिक प्रोटीन मददगार साबित हो सकता है। एम्स के माइक्रोबाॅयोलॉजी विभाग के सहयोग से बायोफिजिक्स विभाग के डॉक्टरों ने शोध कर इस प्रोटीन की खोज की। यह उपलब्ध एंटी फंगल के साथ संयोजन करती है।

ब्लैक फंगस की दवा बनेगी
लैब में इस शोध को प्रो. सुजाता शर्मा, डॉ. गगनदीप सिंह, प्रो. इमैकुलाटा जेस, डॉ. प्रदीप शर्मा और प्रो. तेज पी. सिंह ने किया है। यह शोध अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल (फ्यूजर माइक्रोबायोलाजी जर्नल) में प्रकाशित हुआ है। भविष्य में लैक्टोफेरिन की मदद से ब्लैक फंगस की दवा बनने की संभावना है।

दिल्ली एम्स में हुआ शोध
शोध में पता चला कि लैक्टोफेरिन और इसके कुछ बिल्डिंग ब्लॉक, जिन्हें पेप्टाइड्स कहा जाता है, एम्फोटेरिसिन बी के संयोजन में घातक कवक को रोकते हैं। यह परिणाम इनविट्रो प्रयोगशाला में गए गए प्रयोग से पता चला। लैक्टोफेरिन विभिन्न क्रिया विधि के माध्यम से म्यूकोर्मिकोसिस का कारण बनने वाले कवक को रोकता है। यह आयरन के साथ बंध जाता है। ऐसा होने पर सूक्ष्मजीवों को बढ़ने के लिए आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिल पाते। म्यूकोर्मिकोसिस का कारण बनने वाले कवक को बढ़ने और विषाणु के लिए आयरन की आवश्यकता होती है।

मां के दूध में होता है लैक्टोफेरिन

लैक्टोफेरिन लोहे को अलग करके कवक के विकास को रोक सकता है। साथ ही संक्रमण बढ़ने वाली क्षमता को कम कर सकता है। साथ ही लैक्टोफेरिन कवक कोशिका झिल्ली के साथ मिल जाता है। उसे बढ़ने से रोक देता है। म्यूकोर्मिकोसिस पैदा करने वाले कवक बायोफिल्म बना सकते हैं, जो सूक्ष्म जीवों के समुदाय हैं जो एक सुरक्षात्मक मैट्रिक्स में संलग्न हैं। यह प्रोटीन हमारे शारीरिक स्रावों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।बता दें कि कोरोना महामारी के बाद ब्लैक फंगस के मामले तेजी से बढ़े थे। इससे पीड़ित मरीजों की मृत्युदर 80 फीसदी तक दर्ज की गई थी। इसके अलावा अनियंत्रित मधुमेह, कैंसर, अंग प्रत्यारोपण, बर्न के मरीजों व आइसीयू में भर्ती मरीजों को यह रोग होने का खतरा रहता है।

दवा की जरूरत
डा. सुजाता शर्मा ने कहा इलाज में इस्तेमाल होने वाले एम्फोटेरिसिन-बी दवा के संक्रमण को देखते हुए नई दवा की जरूरत महसूस हुई। उन्होंने कहा कि मां के दूध में लैक्टोफेरिन प्रोटीन होता है जो बैक्टिरिया, फंगस इत्यादि के संक्रमण से बचाव करता है। प्रसव के बाद शुरुआती तीन दिन के मां के दूध में मौजूद लैक्टोफेरिन प्रोटीन ज्यादा प्रभावी होता है। मां के दूध से लैक्टोफेरिन को अलग कर लैब में ब्लैक फंगस पर एम्फोटेरिसिन-बी के साथ लैक्टोफेरिन देकर उसका प्रभाव देखा गया। शोध में पाया गया कि एम्फोटेरिसिन-बी के साथ लैक्टोफेरिन देने पर दवा आठ गुना अधिक असर करती है और यह ब्लैक फंगस के संक्रमण को रोक देता है। अभी इसका ट्रायल जानवर पर हो रहा है। जल्द इंसान पर होगा।

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