फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह को पत्र लिखकर बताया है कि कॉलेजों के प्रिंसिपल अपने यहाँ खाली पड़े वाइस प्रिंसिपल के पदों पर नियुक्ति न किए जाने की कड़े शब्दों में निंदा की है। पत्र में उन्होंने बताया है कि डीयू से संबद्ध 50 फीसदी कॉलेजों में वाइस प्रिंसिपल की नियुक्ति नहीं की गई है। कुछ कॉलेजों ने अपनी मनमानी से बिना रोस्टर और बिना वरीयता के वाइस प्रिंसिपल बना रखे हैं। उन्होंने बताया है कि इन कॉलेजों में सबसे ज्यादा दिल्ली सरकार के वे कॉलेज हैं जहाँ ऑफिसिएटिंग प्रिंसिपल हैं, दिल्ली सरकार के कॉलेजों की प्रबंध समिति नहीं चाहती कि कॉलेजों में प्रिंसिपल के अलावा वाइस प्रिंसिपल भी हों। जबकि कॉलेज प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए वाइस प्रिसिंपल का होना भी आवश्यक है। डॉ सुमन ने ऑफिसीएटिंग प्रिंसिपल को 5 साल से अधिक का कार्यकाल दिए जाने की भी कड़े शब्दों में निंदा की है। डॉ.सुमन ने बताया है कि कुछ कॉलेजों में ऑफिसिएटिंग प्रिंसीपल पिछले दस साल से ज्यादा समय से काम कर रहे हैं। जबकि यूजीसी के नियमानुसार स्थायी प्रिंसिपल भी दस साल से ज्यादा नहीं रह सकता है। विश्वविद्यालय व कॉलेज की प्रबंध समिति ने किस आधार पर उसको ऑफिसिएटिंग प्रिंसिपल रखा है ? फोरम ने मांग की है कि ऑफिसिएटिंग प्रिंसिपल की नियुक्ति 1 साल से ज्यादा न की जाए।
डॉ. हंसराज सुमन ने बताया है कि जब से यूजीसी ने कॉलेज प्रिंसिपल का कार्यकाल 5 वर्ष किया है। तभी से प्रिंसिपल के पदों पर स्थायी नियुक्ति न करके ऑफिसिएटिंग प्रिंसिपल की नियुक्ति की जा रही है। वाइस प्रिसिंपल के पद पर नियुक्ति रोक दी गई है। उन्होंने बताया है कि डीयू के 50 फीसदी कॉलेजों में वाइस प्रिंसिपल के पदों पर कोई नियुक्ति नहीं की गई है। पहले कॉलेजों में वरीयता के आधार पर सीनियर टीचर्स को वाइस प्रिंसिपल नियुक्त किया जाता रहा है लेकिन अभी यूजीसी नियम में बदलाव के कारण प्रिंसिपल ही वाइस प्रिंसिपल नियुक्त करेंगे। वाइस प्रिंसिपल ही गैर-शैक्षिक नियुक्ति संबंधी मुद्दे को प्रबंध समिति के सामने रखते हैं। उन्होंने बताया है कि जब वे विद्वत परिषद के सदस्य के साथ दिल्ली विश्वविद्यालय की उच्च स्तरीय नियुक्ति व पदोन्नति कमेटी के सदस्य थे उन्होंने अपने कार्यकाल में प्रत्येक कॉलेज में वाइस प्रिंसिपल की नियुक्ति को अनिवार्य करने का समर्थन किया था, साथ ही नियुक्ति की प्रक्रिया को पारदर्शी व भेदभाव रहित बनाने को लेकर कुलपति से मांग भी की थी। उन्होंने बताया कि वाइस प्रिंसिपल की नियुक्ति रोस्टर के आधार पर वरीयता क्रम में होनी चाहिए। इस नियुक्ति प्रक्रिया में कोई जोड़तोड़ और मनमानी नहीं होनी चाहिए। कॉलेज के शैक्षणिक माहौल और विद्यार्थियों के बेहतर परिणाम के लिए प्रिंसिपल की अनुपस्थिति में कॉलेज की देखरेख करने का सारा दायित्व वाइस प्रिसिंपल पर होता है।
डॉ हंसराज सुमन ने कुलपति / कुलसचिव से मांग की है कि वह कॉलेजों को सर्कुलर जारी कर निर्देश दें कि वह अपने यहाँ वाइस प्रिंसिपल की नियुक्ति कर उसको अलग कमरा देकर वाइस प्रिंसिपल के नाम का बोर्ड लगवाए। डॉ. सुमन ने यह भी बताया कि यूजीसी ने प्रिंसिपल का कार्यकाल 5 साल दिया है, दूसरे कार्यकाल के लिए उसे फिर से आवेदन करना होगा, यदि उसकी सकारात्मक रिपोर्ट हुई तो पुनः उसको दूसरा टर्म दिया जायेगा। उन्होंने बताया है कि कुछ कॉलेजों के प्रिंसिपल को 5 साल का अतिरिक्त कार्यकाल देने से कॉलेज के प्रशासन, शैक्षिक माहौल और विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। डूटा की पुरानी मांग रही है कि प्रिंसिपल को 5 साल का एक ही कार्यकाल मिलना चाहिए। उन्होंने ऑफिसीएटिंग प्रिंसिपल को 5 साल से अधिक का कार्यकाल दिए जाने की भी कड़े शब्दों में निंदा की है और मांग की है कि इनकी नियुक्ति 1 साल के लिए की जाए और उसी दौरान विज्ञापन देकर स्थायी प्रिंसिपल की नियुक्ति कर देनी चाहिए।
डॉ. हंसराज सुमन