फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस ( शिक्षक संगठन ) के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन व महासचिव प्रोफेसर के.पी. सिंह ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह को पत्र लिखकर मांग की है कि आगामी 12 जुलाई 2024 को हो रही एकेडमिक काउंसिल की मीटिंग में प्रिंसिपल पदों पर आरक्षण व रोस्टर रजिस्टर तैयार कर उन्हें भरने संबंधी, प्रोफेसर पदों पर आरक्षण तथा इन पदों का बैकलॉग व शॉटफाल पूरा करने तथा शैक्षिक व गैर-शैक्षिक पदों को डीओपीटी, यूजीसी गाइडलाइंस –2006 को लागू करते हुए प्रोफेसर काले कमेटी द्वारा सुझाए गए नियमों के तहत पालन करते हुए भरे जाने संबंधी जो निर्देश दिए हैं और उन्हें मीटिंग में टेबल पर रखने व उस पर चर्चा कराने की मांग की है। बता दें कि प्रोफेसर काले कमेटी की रिपोर्ट वर्ष 2016 में दिल्ली विश्वविद्यालय को सौंप दी थी लेकिन रिपोर्ट जमा किए आठ साल हो गए उसे आज तक एकेडमिक काउंसिल में नहीं रखा गया। प्रोफेसर काले कमेटी की रिपोर्ट को एकेडमिक काउंसिल में न रखे जाने व इसे लागू ना करने से दलित , पिछड़े वर्गों के शिक्षकों में गहरा रोष व्याप्त है , उनका कहना है कि इसे लागू न करके केंद्र सरकार के नियमों की उपेक्षा की जा रही है ।
फोरम के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह को लिखें पत्र में बताया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में नौ साल पहले शिक्षा मंत्रालय, एससी/एसटी कमीशन, यूजीसी व डीओपीटी के अधिकारियों की टीम के साथ 9 जुलाई 2015 को दिल्ली विश्वविद्यालय में आरक्षण की समीक्षा करने, प्रोफेसर के पदों पर आरक्षण लागू कराने और प्रिंसिपल के पदों पर आरक्षण लागू कराने का आश्वासन देकर गयी थी। उन्होंने आगे बताया है कि पिछले नौ साल से संसदीय समिति की रिपोर्ट पर कोई विचार नहीं किया गया, न ही विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उस पर आगे कार्यवाही की गई। प्रोफेसर काले कमिटी की रिपोर्ट को लागू न करने के कारण दलित, पिछड़े वर्ग के शिक्षकों में गहरा रोष व्याप्त है। उन्होंने बताया है डीयू में प्रिंसिपल पदों के विज्ञापन निकालकर नियुक्तियाँ हो रही है लेकिन उन पदों पर वैधानिक नियमों के तहत आरक्षण नहीं दिया जा रहा है।
डॉ. सुमन ने बताया है कि संसदीय समिति जब दिल्ली विश्वविद्यालय में आई तो उसने पाया कि यहांँ प्रोफेसर के पदों पर और प्रिंसिपल के पदों पर आरक्षण नहीं दिया जा रहा है। साथ ही पोस्ट बेस रोस्टर को भी यूजीसी व डीओपीटी के निर्देशानुसार लागू नहीं किया जा रहा है। संसदीय समिति ने इस पर गहरी चिंता व्यक्त की थी। दिल्ली विश्वविद्यालय ने बाद में प्रोफेसर के पदों पर आरक्षण दे दिया लेकिन प्रिंसिपल के पदों पर आज तक आरक्षण नहीं दिया। उनका कहना था कि विश्वविद्यालय के सभी कॉलेजों के प्रिंसिपल के पदों को क्लब करके रोस्टर रजिस्टर तैयार करना चाहिए था, उसके बाद इन पदों को रोस्टर के अनुसार आरक्षण लागू करते हुए विज्ञापित किया जाना चाहिए था। विशेष भर्ती अभियान तथा बैकलॉग के तहत एससी/एसटी, ओबीसी के अभ्यर्थियों से इन पदों को भरा जाना चाहिए था। लेकिन फोरम ने खेद व्यक्त करते हुए कहा है कि पिछले नौ साल से संसदीय समिति की रिपोर्ट को आज तक दिल्ली विश्वविद्यालय ने लागू नहीं किया है, ना ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने आज तक प्रिंसिपल के पदों का रोस्टर ही तैयार किया है। उन्होंने प्रोफेसर काले कमेटी की रिपोर्ट को एकेडमिक काउंसिल में रखा ही नहीं।
फोरम के महासचिव प्रोफेसर के.पी. सिंह ने डीयू कुलपति को लिखें पत्र में बताया है कि डीयू के कॉलेजों में प्रिंसिपल के पदों पर आरक्षण देने के लिए एससी, एसटी की कल्याणार्थ संसदीय समिति 9 जुलाई 2015 तथा दिसम्बर 2020 में ओबीसी कमीशन दिल्ली विश्वविद्यालय में अपनी टीम के साथ आई थी। 18 दिसम्बर 2015 को समिति ने एक रिपोर्ट लोकसभा में प्रस्तुत की थी, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों के प्रिंसिपल पदों को क्लब करके रोस्टर रजिस्टर बनाया जाये। इस तरह से दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रिंसिपल पदों पर आरक्षण लागू होने पर एससी-12, एसटी-06 और ओबीसी कोटे के-22 पद बनते हैं, लेकिन आज तक दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रिंसिपल पदों को क्लब करके रोस्टर रजिस्टर तक नहीं बनाया है। इस मुद्दे को विश्वविद्यालय की एकेडेमिक काउंसिल के सदस्यों ने काउंसिल की मीटिंग में कई बार उठाया है लेकिन इस पर विश्वविद्यालय प्रशासन पूरी तरह मौन है। उन्होंने बताया है कि इस विषय पर एकेडमिक काउंसिल के कई सदस्यों से बात हुई है। इस मुद्दे को लेकर एकेडमिक काउंसिल के सदस्य काफी सचेत हैं और 12 जुलाई 2024 को होने जा रही एकेडमिक काउंसिल की मीटिंग में प्रोफेसर काले कमेटी की रिपोर्ट को जोरदार तरीके से उठाने के लिए तैयार हैं।
फोरम ने कुलपति को लिखे पत्र में बताया है कि यूजीसी गाइडलाइंस–2006 के अनुसार प्रोफेसर के पदों पर आरक्षण देना अनिवार्य किया गया है। प्रोफेसर और प्रिंसिपल के पद एक ही वेतनमान के हैं तो फिर प्रिंसिपल के पदों पर आरक्षण क्यों नहीं दिया जा रहा है ? उन्होंने यह भी मांग की है कि जिन कॉलेज में ऑफिसिएटिंग प्रिंसिपल बने पांच साल से ज्यादा हो चुके हैं उन्हें तुरंत हटाकर क्लब किए गए रोस्टर के अनुसार प्रिंसिपलों के पदों का विज्ञापन निकाल कर नियुक्ति की जाए। उन्होंने बताया है कि दिल्ली सरकार के कॉलेजों में 15 से अधिक प्रिंसिपलों के पदों पर स्थायी नियुक्ति होनी है, इन पदों पर ऑफिसिएटिंग प्रिंसिपल लगे हुए हैं ये कॉलेज हैं —श्री अरबिंदो कॉलेज, राजधानी कॉलेज, मोतीलाल नेहरू कॉलेज, सत्यवती कॉलेज, श्री अरविंदो कॉलेज (सांध्य), महाराजा अग्रसेन कॉलेज, भीमराव अंबेडकर कॉलेज, भगिनी निवेदिता कॉलेज, विवेकानंद कॉलेज, इंदिरा गांधी स्पोर्ट्स एंड साइंस कॉलेज, दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज, भगतसिंह कॉलेज(सांध्य) के अतिरिक्त अन्य कई कॉलेजो में प्रिंसिपल के पद आरक्षित श्रेणी में बनेंगे। इन कॉलेजों में प्रिंसिपल का विज्ञापन आरक्षित पदों का निकालकर नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी की जाए। उनका कहना है कि पांच साल कार्यकाल पूरा कर चुके प्रिंसिपलों को हटाकर आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों से कार्यवाहक या स्थायी प्रिंसिपलों की नियुक्ति की जाए। उन्होंने यह भी मांग की है कि 12 जुलाई को एकेडमिक काउंसिल की मीटिंग में प्रोफेसर काले कमेटी की रिपोर्ट को टेबल पर रखकर उसे पास कराकर इसे तुरंत लागू किया जाना चाहिए।