एक दशक से पंजाब से कनाडा जाने वाले विद्यार्थियों की लंबी कतार थी, जिसका फायदा देखकर यहां के नामचीन एजेंटों ने कनाडा में अपना हेडक्वार्टर बना लिया। वहां पर बड़े कॉलेजों से संपर्क कर उनके कैंपस शहरों में खोलकर पंजाब से स्टूडेंट्स को भेजना शुरू कर दिया। हालात ऐसे बने कि इन कैंपस संचालकों की चांदी होने लगी।
निययों में बदलाव
विदेशी विद्यार्थियों की उन्हीं स्पाउस यानी जीवनसाथी को ओपन वर्क परमिट दिया जाएगा, जो मास्टर्स या डॉक्टरेट प्रोग्राम कर रहे हैं। ग्रेजुएट या कॉलेज के छात्रों के स्पाउस के लिए ओपन वर्क परमिट नहीं होगा। इससे फर्जी शादियों पर नकेल कसी गई है।
-स्टूडेंट वर्क परमिट के लिए एक नए दस्तावेज की जरूरत होगी, जो अटेस्ट किया जाने वाला लेटर है। यह कनाडाई प्रांत की ओर से जारी किया जाता है, जिसमें आवेदन करने वाले को ठहरने की मंजूरी दी गई होती है।
-कनाडा में प्रांत सरकार का अधिकार होगा कि किस कॉलेज को कितनी सीटें आवंटित करनी हैं। यह सीटें उसके आधारभूत ढांचे और अंदर बने हॉस्टल पर निर्भर होंगी। आगे कनाडा की फेडरल ट्रूडो सरकार ही फैसले लेती थी।
-कनाडा में एलओआई (लेटर ऑफ इंटेंट) के साथ ही दाखिला मिलता था, लेकिन अब पीएएल प्रोविंसनल अटेस्टेशन लेटर से दाखिला मिलेगा। अगर यह लेटर नहीं लगता है, तो आगे वर्क परमिट नहीं मिलेगा।
-जीआईसी पहले 10 हजार कनाडाई डॉलर थी, जिसको बढ़ाकर अब 20 हजार डॉलर कर दिया गया है।
कनाडा पंजाबियों की पहली पसंद
विदेश में पढ़ाई करने की इच्छा रखने वाले भारतीय विद्यार्थियों के लिए कनाडा हमेशा पहली पसंद रहा है। विदेश मंत्रालय के डेटा के मुताबिक, हर साल औसतन 1.5 लाख विद्यार्थी कनाडा गए। इसके बाद अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात जाने वाले विद्यार्थियों की तादाद रही। यूके और ऑस्ट्रेलिया जाने वालों की संख्या क्रमशः 50 हजार और 90 हजार के करीब रही।
2013 से 2022 तक कनाडा में पढ़ाई करने वाले भारतीय विद्यार्थियों की संख्या में 260 फीसदी का इजाफा हुआ है। लंबे समय से इमिग्रेशन में अपनी पहचान बनाने वाले ईएसएस ग्लोबल के मैनेजर रवनीत सिंह का कहना है कि हालिया समय में नाटकीय बदलाव दिख रहे हैं। कनाडाई अध्ययन वीजा आवेदनों की संख्या काफी कम हो गई है। कनाडा में स्पाउस वीजा बंद होने से भारतीय विद्यार्थियों की संख्या में गिरावट आई है। कनाडा में महंगाई के अलावा जीआईसी 20 हजार डॉलर होने का असर हुआ है।
नौकरी नहीं, घर भी महंगे
त्रिवेदी ओवरसीज के सुकांत का कहना है कि कनाडा की जस्टिन ट्रूडो की सरकार ने पोस्ट-ग्रेजुएट वर्क परमिट (पीजीडब्ल्यूपी) पर जो फैसला लिया है, उसने अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों, विशेषकर भारतीयों को निराश किया है। कनाडा से जिस तरह की खबरें आ रही हैं, वहां पर नौकरी नहीं है, घर महंगे हो रहे हैं। बैंक ब्याज बढ़ गए हैं। कनाडा में अपराध बढ़ता जा रहा है। इससे अभिभावकों में चिंता होना स्वभाविक है।
इस साल जनवरी और फरवरी में कनाडाई सरकार की ओर से भारतीय विद्यार्थियों को लगभग 45 हजार अध्ययन परमिट दिए गए थे। मार्च 2024 में यह संख्या घटकर 4,210 रह गई, जबकि जून में यह 39 हजार के करीब थी।
कनाडा-भारत रिश्तों में तल्खी सबसे बड़ी वजह: बॉसी
कनाडा के टोरंटो के रहने वाले प्रसिद्ध लेखक जोगिंदर बॉसी का कहना है कि यहां पर कट्टरपंथी ताकतों ने भारत व कनाडा के रिश्तों को खराब किया है। यहां पर आने वाले स्टूडेंट्स को कट्टरपंथी लालच देकर अपने साथ मिलाते हैं और उनको दलदल में धकेल रहे हैं, जिससे कनाडा के हालात खराब हो रहे हैं।