अपने फैसले में कोर्ट ने कहा, सेवा समाप्ति का आदेश किसी रिपोर्ट के आधार पर पारित किया गया, जो संभवतः प्रतिवादी (ब्रजेश) को भी नहीं दी गई थी। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रतिवादी को कोई कारण बताओ नोटिस जारी नहीं किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को कहा है कि ठेके पर रखे गए कर्मचारियों को बर्खास्त करने से पहले उनका पक्ष जानना जरूरी है। जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने उत्तर प्रदेश राज्य पथ परिवहन निगम के एक कंडक्टर (ठेका कर्मी) की नौकरी से बर्खास्त करने के आदेश को रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि कदाचार के आधार पर ब्रजेश कुमार की नौकरी समाप्त कर दी गई। नौकरी समाप्त करने से पहले न तो नियमित जांच की गई और न ही उसे सुनवाई का कोई अवसर दिया गया।
मामले के मुताबिक ब्रजेश के पिता यूपी राज्य पथ परिवहन निगम में काम करते थे। सेवा के दौरान अक्तूबर 2003 में उनकी मृत्यु हो गई थी। मृत्यु के वक्त बेटा बृजेश नाबालिग था, इसलिए उसे अनुकंपा के आधार पर नौकरी नहीं दी दी गई। 2008 में बालिग होने पर उसने अनुकंपा के आधार पर नौकरी का आवेदन किया लेकिन उसे स्थाई नौकरी नहीं दी गई। 2012 में उसे ठेके पर कंडक्टर के तौर पर नियुक्त किया गया। नौकरी के दौरान दो मौकों पर बस में तीन सवारी बिना टिकट पाए गए और एक मौके पर 500 किलोग्राम का सामान बीमा किसी बुकिंग के पाया गया। इसके बाद उसे कदाचार का दोषी मानते हुए नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया।