Sunday, December 29, 2024
Google search engine
Homepunjabलिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले शादीशुदा प्रेमी जोड़ों को भी मिलेगी सुरक्षा

लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले शादीशुदा प्रेमी जोड़ों को भी मिलेगी सुरक्षा

पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायलय ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए साफ कर दिया है कि लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले शादीशुदा प्रेमी जोड़ों को भी सुरक्षा दी जाएगी।

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट की खंडपीठ ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि कोई व्यक्ति पहले से विवाहित है और अपने जीवनसाथी के अलावा किसी और के साथ सहमति संबंध में रहता है तो उसे सुरक्षा दी जानी चाहिए। नाबालिगों के मामले में कस्टडी उनके अभिभावकों को दी जानी चाहिए और यदि उनकी जान को खतरा हो तो उन्हें बाल गृह या नारी निकेतन भेजा जाना चाहिए।

दरअसल जस्टिस अनिल खेत्रपाल के सामने एक प्रेमी जोड़े ने सुरक्षा की गुहार लगाई थी। इस मामले में युवक पहले से विवाहित था और उसका पत्नी से विवाद चल रहा था लेकिन तलाक नहीं हुआ था। इस बीच युवक एक अन्य महिला के साथ भागकर उसके साथ लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने लगा। दोनों ने परिजनों से जान को खतरा बता कर सुरक्षा की मांग की।

जस्टिस अनिल खेत्रपाल ने कहा कि हाईकोर्ट की कई पीठ नाबालिग व लिव-इन- रिलेशनशिप में प्रेमी जोड़ों को सुरक्षा देने के आदेश दे चुकी है तो कई पीठ ऐसे ही मामलों को नैतिक व सामाजिक तौर पर गलत मान कर उनकी याचिका खारिज कर चुकी है। खुद जस्टिस खेत्रपाल ने एक जोड़े की याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि अगर लिव-इन रिलेशनशिप को संरक्षण दिया जाता रहेगा तो समाज का पूरा सामाजिक ताना-बाना गड़बड़ा जाएगा। जस्टिस अनिल खेत्रपाल ने 21 मई 2021 को चीफ जस्टिस से ऐसे मामलों पर स्पष्ट फैसला लेने के लिए एक बड़ी पीठ के गठन करने का आग्रह किया था। इसके बाद चीफ जस्टिस ने इस मामले की डिवीजन बेंच को सुनवाई के आदेश दिए थे।

अब खंडपीठ ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि सहमति संबंध में रहने वाले वयस्कों के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करना संवैधानिक कर्तव्य है। हालांकि ऐसे मामलों में जहां जोड़े में से केवल एक नाबालिग है या दोनों नाबालिग हैं, सुरक्षा देना वैधानिक नियमों के खिलाफ होगा।

खंडपीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में नाबालिग की कस्टडी उसके माता-पिता को वापस दी जानी चाहिए। यदि कोर्ट को लगता है कि नाबालिग के जीवन को खतरा है, तो कोर्ट को नाबालिग को वयस्क होने तक बाल गृह या नारी निकेतन में रहने का निर्देश देना चाहिए। पीठ ने यह भी सुझाव दिया है कि ऐसे मामलों को जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों या राज्य मानवाधिकार आयोग के पैरा-लीगल स्वयंसेवकों द्वारा निपटाया जाना चाहिए और इन तंत्रों द्वारा मामले को निपटाने में विफलता की स्थिति में ही याचिका क्षेत्राधिकार के तहत हाई कोर्ट के समक्ष लाया जाना चाहिए।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments