भाजपा की जीत उसी फैक्टर के कारण हुई है, जिसके सहारे वह इस जाटलैंड पर पिछले दस सालों से राज करती आ रही थी। कांग्रेस ने अपना पूरा जोर जाट पॉलिटिक्स को मजबूत करने पर लगाया।
कांग्रेस के तीन बड़े नेताओं के बीच चुनाव के दौरान भी आपसी फूट साफ दिखाई दी। भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला के बीच तनातनी की खबरों ने उनके मतदाताओं को भ्रमित कर दिया। कुमारी सैलजा का हुड्डा के साथ मतभेद को भाजपा ने दलितों के स्वाभिमान को चोट की तरह पेश किया। परिणाम बताते है कि मतदाताओं पर इस फैक्टर का भी असर पड़ा है। कांग्रेस आलाकमान की इन दूरियों को पाटने की कोशिश सफल नहीं हुई।
भाजपा ने इसी फैक्टर पर पिछले दस सालों से अपनी राजनीति आगे बढ़ाई है। अब वही राजनीति उसे फल देती दिख रही है। भाजपा का वोट शेयर इस समय भी लगभग 40 फीसदी के आसपास होता दिख रहा है जो बताता है कि कांग्रेस और राहुल गांधी के कड़े प्रचार के बाद भी भाजपा ने अपना कोर वोट बनाए रखा है। भाजपा की सफलता का यही सबसे बड़ा कारण रहा।
बिना पर्ची-बिना खर्ची का दांव चल गया
इसके साथ ही भाजपा के शासनकाल में लोगों को बिना खर्ची-पर्ची के नौकरी मिलने लगी थी। दरअसल, कहा जाता है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के शासनकाल में किसी नेता का पत्र (पर्ची) किसी को नौकरी पाने की गारंटी होती थी। इसके साथ ही उन्हें खर्ची यानी घूस भी देनी पड़ती थी। लेकिन भाजपा के राज में बिना खर्ची-बिना पर्ची के लोगों को नौकरी मिल रही थी। यही कारण है कि युवाओं ने कांग्रेस की तुलना में भाजपा पर ज्यादा भरोसा किया।