शांतनु नायडू रतन टाटा की निजी निवेश कंपनी आरएनटी कार्यालय में महाप्रबंधक हैं। रतन टाटा शांतनु को अपने बेटे की तरह मानते थे। शांतनु एक उद्यमी हैं और मोटोपाज जैसे मुहिम से भी दशकों से जुड़े हैं जो आवारा कुत्तों की सुरक्षा के लिए काम करती है। यही मुहिम रतन टाटा और शांतनु की गहरी दोस्ती का कारण भी बनी।
करोबार जगत की दिग्गज हस्ती रतन टाटा अब हमारे बीच नहीं हैं। 86 वर्ष की उम्र में रतन टाटा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। मशहूर उद्योगपति के निधन से देश भर में शोक की लहर है। राजनेताओं, उद्योगपतियों से लेकर खिलाड़ियों और अभिनेताओं तक कई लोग उन्हें अपनी श्रद्धांजलि दे रहे हैं। रतन टाटा सबसे करीबी दोस्त और उनके साथ हमेशा साये की तरह खड़े रहने वाले शांतनु नायडू ने भी रतन टाटा को श्रद्धांजलि दी है। शांतनु ने रतन टाटा को याद करते हुए लिखा, ‘इस दोस्ती के बाद अब उनके जाने से मेरी जिंदगी में एक खालीपन आ गया है, जिसे भरने में मैं अपनी बाकी जिंदगी बिताऊंगा। दुख प्रेम की कीमत है, अलविदा, मेरे प्रिय दीपस्तंभ।’
रतन टाटा ने शांतनु नायडू को अपने करीबी लोगों में से एक के रूप में अपनाया है और उन्हें बेटे की तरह मानते थे। 31 वर्षीय शांतनु एक उद्यमी हैं और गुड फेलोज स्टार्टअप के संस्थापक भी हैं। वह मोटोपाज जैसे मुहिम से भी दशकों से जुड़े हैं। शांतनु की लिंक्डइन प्रोफाइल के अनुसार, वह रतन टाटा की निजी निवेश कंपनी आरएनटी कार्यालय में महाप्रबंधक हैं।
शांतनु ने 2010 में सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और 2014 में यहां से बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग (बीई) की पढ़ाई पूरी की। 2014 में शांतनु ने पुणे में टाटा एलेक्सी में ऑटोमोबाइल डिजाइन इंजीनियर के तौर पर काम शुरू किया। टाटा एलेक्सी में उन्होंने सितंबर 2014 से जुलाई 2016 तक काम किया। इसके बाद शांतनु अमेरिका चले गए। यहां न्यूयॉर्क के कॉर्नेल जॉनसन ग्रेजुएट स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में 2016 से 2018 के बीच एमबीए की पढ़ाई की।
शांतनु नायडू की रतन टाटा के साथ घनिष्ठ मित्रता की वजह बेहद दिलचस्प है। शांतनु पिछले छह साल से अधिक समय से दिग्गज कारोबारी और टाटा समूह के मानद चेयरमैन रतन टाटा के साथ काम कर रहे थे। हालांकि, दोनों की मुलाकात 2014 में हुई जब शांतनु पुणे में टाटा एलेक्सी में ऑटोमोबाइल डिजाइन इंजीनियर के तौर पर काम कर रहे थे। पुणे में देर रात हाईवे से गुजरते समय शांतनु को सड़क पर कुत्तों के शव दिखाई देते थे, जिनकी तेज रफ्तार से चलने वाली गाड़ियों के नीचे आने से मौत हो जाती थी।
इन घटनाओं ने शांतनु को बहुत परेशान किया और वह सोचने लगे कि आवारा कुत्तों की जान कैसे बचाई जा सकती है। इससे शांतनु परेशान हो गए और सोचने लगे कि वह सड़क पर रहने वाले कुत्तों की जान कैसे बचा सकते हैं। एक साक्षात्कार में शांतनु ने बताया कि उन्होंने उन लोगों से बात की जो कुत्तों की वजह से सड़क दुर्घटनाओं में घायल हुए थे जिनसे दृश्यता की कमी की परेशानी पता चली। ‘दृश्यता की इतनी कमी थी कि चालक को अपनी जान खतरे में डाले बिना यह तय करने का पर्याप्त समय मिल सके कि उसे किस रास्ते पर जाना है। चूंकि मैं एक ऑटोमोबाइल इंजीनियर था, इसलिए मेरे मन में कुत्तों के लिए कॉलर बनाने का विचार आया जिससे वे रात में स्ट्रीट लाइट के बिना भी दिखाई दे सकें।’
शांतनु का यह काम टाटा समूह और रतन टाटा तक पहुंच गया जिनका खुद कुत्तों से काफी लगाव था। एक युवा के इस नेक काम के बारे में टाटा समूह की कंपनियों के न्यूजलेटर में लिखा गया और यह रतन टाटा के ध्यान में आया। शांतनु ने साक्षात्कार में बताया, ‘लोगों ने मुझे इस बारे में रतन टाटा को लिखने को कहा और उन्होंने ऐसा किया और लंबे समय तक कुछ नहीं हुआ। लेकिन मेरे पिता आशावान थे।’
एक दिन शांतनु को रतन टाटा से मुंबई में उनके कार्यालय में मिलने का निमंत्रण मिला। शांतनु कहते हैं, ‘टाटा ने हमारे काम के लिए बहुत प्यार जताया, क्योंकि उन्हें स्ट्रीट डॉग्स से बहुत प्यार है और उन्होंने मुझसे पूछा कि हमें किस तरह का सहयोग चाहिए। मैंने कहा कि हमें किसी तरह का सहयोग नहीं चाहिए, लेकिन हम छात्र हैं, इसलिए उन्होंने जोर दिया और हमारे प्रयास में अघोषित निवेश किया।’
जब शांतनु अपनी डिग्री लेकर वापस लौटे तो टाटा ने उन्हें अपने कार्यालय में शामिल होने के लिए कहा। यह 2018 की बात है। और तब से वह उनके कार्यालय में काम कर रहे हैं। शांतनु को उम्मीद है कि वह निकट भविष्य में रतन टाटा से सीखी गई बातों की सूची संकलित करेंगे। अब जब रतन टाटा ने दुनिया को अलविदा कह दिया है तो शांतनु को अपने ‘दीपस्तम्भ’ के जाने का भारी गम है। लेकिन शांतनु कहते हैं…दुख प्रेम की कीमत है…।