प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की समग्र महिला एलएफपीआर 24.6 फीसदी से बढ़कर 41.5 फीसदी हो गई, जबकि शहरी महिला एलएफपीआर 20.4 फीसदी से बढ़कर 25.4 फीसदी हुई। ये आंकड़े 2017-18 से 2022-23 के बीच के हैं। इस वृद्धि के कारण मुद्रा ऋण, ड्रोन दीदी जैसी पहल हैं।
भारत की महिला श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) में 2017 के मुकाबले शानदार वृद्धि हुई है। इसमें शहरी के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं भी आगे रहीं। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की समग्र महिला एलएफपीआर 24.6 फीसदी से बढ़कर 41.5 फीसदी हो गई, जबकि शहरी महिला एलएफपीआर 20.4 फीसदी से बढ़कर 25.4 फीसदी हुई। ये आंकड़े 2017-18 से 2022-23 के बीच के हैं। इस वृद्धि के कारण मुद्रा ऋण, ड्रोन दीदी जैसी पहल हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों में झारखंड में 23.3 फीसदी और बिहार में 6 गुना वृद्धि हुई। वहीं, पूर्वोत्तर राज्यों ने भी उल्लेखनीय वृद्धि दिखाई। उदाहरण के लिए नगालैंड में 15.7 से 71.1 फीसदी वृद्धि रही। राष्ट्रीय स्तर पर शहरी क्षेत्रों में कुल मिलाकर मामूली वृद्धि देखी गई। हालांकि, शहरों में गुजरात में महिला की भागीदारी 16.2 से बढ़कर 26.4 फीसदी रही। वहीं, शहरी क्षेत्र में तमिलनाडु में मामूली बदलाव (27.6% से 28.8%) हुआ। यह रिपोर्ट ईएसी-पीएम सदस्य शमिका रवि और भारतीय सांख्यिकी संस्थान की अर्थशास्त्र और योजना इकाई के सदस्य मुदित कपूर ने तैयार की है।
ये कारक करते हैं प्रभावित
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में महिला श्रम बल भागीदारी दर बढ़ी तो है, लेकिन जीवन के कुछ बुनियादी पहलुओं का इस पर गहरा प्रभाव रहता है। इनमें बढ़ती उम्र, शादी और बच्चे पैदा करना प्रमुख है। ये महिलाओं की भागीदारी को महत्वपूर्ण और हानिकारक रूप से प्रभावित करते हैं। इसके अलावा सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंडों का भी महत्वपूर्ण प्रभाव है। अमीर और गरीब राज्यों में समान रूप से कम महिला एलएफपीआर देखा गया।
गांवों में विवाहित महिलाओं की भागीदारी रही अधिक
गांवों में विवाहित महिलाओं ने अविवाहित महिलाओं की तुलना में अधिक भागीदारी की। राजस्थान और झारखंड में विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के बीच महत्वपूर्ण वृद्धि रही। उत्तरी राज्यों में पंजाब और हरियाणा में महिला एलएफपीआर कम रही। पूर्वी राज्यों में ग्रामीण बिहार में देश में सबसे कम एलएफपीआर थी। हालांकि, हाल के वर्षों में इसमें महत्वपूर्ण सुधार हुआ है।
30-40 वर्ष की महिलाओं की भागीदारी सबसे अधिक
रिपोर्ट के मुताबिक, 30-40 वर्ष की आयु में महिला भागीदारी चरम पर होती है और उसके बाद तेजी से घट जाती है। दूसरी ओर, पुरुषों की भागीदारी 30-50 वर्ष की आयु से सबसे अधिक सौ फीसदी रहती है, उसके बाद धीरे-धीरे घटती है। वैवाहिक स्थिति महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए एलएफपीआर का एक महत्वपूर्ण निर्धारक है।