विदेशों से भेजे गए धन का आंकड़ा इतना बड़ा है कि ये पाकिस्तान और बांग्लादेश के कुल बजट से भी ज्यादा है। गौरतलब है कि बीते कई वर्षों से विदेशों में रह रहे भारतीयों द्वारा दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले सबसे ज्यादा पैसा भेजा जा रहा है।
लाखों भारतीय विदेशों में रहकर काम कर रहे हैं और ये भारतीय, भारत के आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभा रहे हैं। इनकी अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस साल विदेश में रह रहे भारतीयों ने 129 अरब डॉलर भारत भेजे हैं। यह आंकड़ा इतना बड़ा है कि ये पाकिस्तान और बांग्लादेश के कुल बजट से भी ज्यादा है। गौरतलब है कि बीते कई वर्षों से विदेशों में रह रहे भारतीयों द्वारा दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले सबसे ज्यादा पैसा भेजा जा रहा है। आइए जानते हैं इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्य
1. विदेशों में काम कर रहे भारतीयों ने इस साल 129 अरब डॉलर भेजे हैं, जो कि पाकिस्तान के (67 अरब डॉलर) और बांग्लादेश के (68 अरब डॉलर) संयुक्त बजट से भी ज्यादा हैं। वहीं मैक्सिको को मिले कुल रेमिटेंस से यह दोगुने से भी ज्यादा है।
2. वर्ल्ड बैंक के अर्थशास्त्रियों द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार, इस साल भी भारत को सबसे ज्यादा रेमिटेंस (विदेशों से भेजा गया धन) मिला है। 129 अरब डॉलर के साथ भारत पहले स्थान पर है, जबकि मैक्सिको 68 अरब डॉलर के साथ दूसरे, चीन 48 अरब डॉलर के साथ तीसरे, फिलीपींस 40 अरब डॉलर के साथ चौथे और पाकिस्तान 33 अरब डॉलर के साथ पांचवें स्थान पर है।
3. बीते पांच साल से भारत को हर साल 100 अरब डॉलर से ज्यादा का रेमिटेंस मिल रहा है। इसमें साल 2020 अपवाद रहा क्योंकि कोरोना महामारी के चलते भारत का रेमिटेंस 83 अरब डॉलर ही रहा था। भारत को मिलने वाले रेमिटेंस में इस साल 5.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। पिछले साल यह बढ़ोतरी 1.2 प्रतिशत रही थी।
4. भारत को मिले रेमिटेंस का आंकड़ा भारत में कुल विदेशी निवेश से भी ज्यादा रहा। इस साल सितंबर तिमाही तक भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 62 अरब डॉलर था। साथ ही रेमिटेंस ने इस साल के भारत के रक्षा बजट को भी पार कर लिया है। भारत का इस साल रक्षा बजट 55 अरब डॉलर रहा था।
5. बीते 10 वर्षों में भारत के रेमिटेंस में 57 प्रतिशत की वृद्धि आई है। बीते एक दशक में भारत को रेमिटेंस से करीब एक खरब डॉलर (982 अरब डॉलर) मिले हैं। साल 2014 में भारत को मिले रेमिटेंस का आंकड़ा 70 अरब डॉलर, 2015 में 69 अरब डॉलर, 2016 में 63 अरब डॉलर, 2017 में 69 अरब डॉलर, 2018 में 79 अरब डॉलर, 2019 में भी 79 अरब डॉलर, 2020 में 83 अरब डॉलर, 2021 में 105 अरब डॉलर, 2022 में 111 अरब डॉलर, 2023 में 125 अरब डॉलर और इस साल यानी 2024 में 129 अरब डॉलर रहा।