क्या है सोनू सूद की फिल्म ‘फतेह’ की कहानी?
पंजाब के मोंगा में रहने वाला फतेह (सोनू सूद) डेयरी में सुपरवाइजर है। गांव में उसका काफी सम्मान है। उसके पड़ोस में रहने वाली निम्रत (शिव ज्योति राजपूत) एक छोटी सी मोबाइल की दुकान चलाती है, लेकिन एक बैक लोन एप का एजेंट बनने के बाद वह तनाव में रहती है। उसने अपने पिंड के कई लोगों को लोन दिलवाया होता है। अब वह अनावश्यक पेनाल्टी और ब्याज का सामना कर रहे हैं, जो उन्हें आत्महत्या जैसा कदम उठाने को मजबूर कर रहे हैं।इस एप के संचालक चड्ढा (आकाशदीप साबिर) से मिलने निम्रत दिल्ली आती है। उसके बाद वह लापता हो जाती है। उसे खोजने की जिम्मेदारी फतेह उठाता है। दिल्ली आने पर हैकर खुशी शर्मा (जैकलीन फर्नांडीज) की मदद से उसे साइबर अपराधियों के बारे में पता चलता है, जो न सिर्फ आम लोगों को लूट रहे हैं बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं।
इस दौरान फतेह के अतीत की परतें भी खुलती है कि वह एक खुफिया एजेंसी का एजेंट होता है जिसका न कोई नाम होता है न पता। अब फतेह निम्रत को खोजने के साथ इन साइबर अपराधियों के खात्मे के मिशन पर है।
साइबर क्राइम के मामले को उठाती कमजोर कहानी
अपनी पहली फिल्म के तौर पर सोनू सूद ने विषय अच्छा चुना है। वर्तमान में न जाने कितने लोग साइबर ठगी का शिकार हुए हैं। यह फिल्म बताती है कि मोबाइल फोन की कमजोरियों के चलते किस प्रकार लालच और हताशा लोगों को डिजिटल शिकारियों के लिए आसान लक्ष्य बनाती है। फिल्म की शुरुआत ही भरपूर एक्शन से होती है।
यह एक्शन सीक्वेंस जॉन विक और किल बिल हालीवुड फिल्मों जैसी क्रूरता को दर्शाते हैं। एक्शन के लिए इमोशन जरूरी होता है। यहां पर एक्शन भरपूर है लेकिन इमोशन की कमी बहुत है। शुरुआत लोन एप से धोखाधड़ी से होती है फिर दिखाया है कि साइबर अपराधी देश भर में लोगों के बैंक खातों को बड़ी संख्या में एकसाथ हैक कर रहे हैं।
हालांकि साइबर पुलिस और सरकार को इससे कोई मतलब ही नहीं है। हमारा नायक अकेले दम पर चाकू, बंदूक, या आसपास की चीजों से अपराधियों की गर्दन, आंखों, गालों, चेहरे, धड़, पैरों, हाथों पर वार करके उन्हें आसानी से मार गिराता है। एक दृश्य में सत्यप्रकाश से निम्रत कहती है कि आप फतेह से माफी मांग लो वह माफ कर देंगे।
फतेह के अतीत से निम्रत कैसे परिचित है यह समझ नहीं आता? खुशी के हैकर बनने की क्या वजह है? वह लंदन से क्यों आई? निम्रत उसके संपर्क में कैसे आई? ऐसे कई सवालों के जवाब अनुत्तरित हैं। फतेह और निम्रत की बैकस्टोरी भी बहुत कमजोर है। कुल मिलाकर स्क्रिप्ट में हिंसा भरपूर है। साइबर क्राइम की दुनिया बनावटी दिखी है। साइबर अपराध की दुनिया के सरगना रजा (नसीरूद्दीन शाह), उसके साथ काम करने वाला सत्यप्रकाश (विजय राज) के पात्र आधे अधूरे हैं। फिल्म का क्लाइमेक्स भी दमदार नहीं बन पाया है।
बतौर निर्देशक कैसी रही सोनू सूद की शुरुआत?
बतौर निर्देशक यह सोनू सूद की पहली फिल्म है। फिल्म पूरी तरह उनके कंधों पर है। उन्होंने अभिनय के साथ एक्शन को भी बेहतर तरीके से संतुलित करने का प्रयास किया है। हालांकि, अंकुर पजनी के साथ लिखी गई स्क्रीनप्ले के स्तर पर मात खा गए हैं। विजयराज और नसीरूद्दीन अपनी नकारात्मक भूमिका से न्याय करते दिखते हैं। जैकलीन का पात्र पूरी तरह एक्सप्लोर नहीं हुआ है। मिले हुए दृश्यों में वह सहज नजर आई हैं। सहयागी भूमिका में आए कलाकार शिव ज्योति राजपूत, दिब्येंदु भट्टाचार्य पात्र के अनुरूप है।
फिल्म का गाना फतेह कर फतेह कर्णप्रिय है लेकिन उसका उपयोग समुचित तरीके से नहीं हुआ है। ‘हिटमैन’ को अंतिम क्रेडिट में बजाया गया है। जॉन स्टीवर्ट एडुरी और हैंस जिमर द्वारा रचित पृष्ठभूमि संगीत तनाव को बढ़ाता है, हालांकि यह कभी-कभी भारी भी लग सकता है। विन्सेन्जो कोंडोरेली की सिनेमैटोग्राफी शानदार है। फिल्म के आखिर में सीक्वल का संकेत भी है।