Monday, April 21, 2025
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मां कर रही दूध दान… नवजात को मिल रहा जीवन, डॉक्टरों ने दी यह सलाह

लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में बना देश का पहला वात्सल्य-मातृ अमृत कोष इसके लिए काम कर रहा है। वहीं, एम्स अपने सेंटर को अपग्रेड कर रहा है।

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अपने नौनिहालों की परवरिश के साथ कई महिलाएं उन बच्चों को अपने दूध के रूप में जीवन रक्षक कवच मुहैया करवा रही हैं, जिनको किसी वजह से मां का दूध नहीं मिल पाता। लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में बना देश का पहला वात्सल्य-मातृ अमृत कोष इसके लिए काम कर रहा है। वहीं, एम्स अपने सेंटर को अपग्रेड कर रहा है। यहां पर मशीन की मदद से माताओं का दूध लेकर नवजातों को दिया जाता है,जबकि सफदरजंग अस्पताल में इस तरह की सुविधा विकसित होनी हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि प्री मैच्योर बच्चे सीधे मां का स्तनपान नहीं कर पाते। ऐसे में उन्हें मशीन की मदद से दूध दिया जाता है। इस सेंटर पर मां से दूध लेकर बच्चों को ओरल माध्यम से दिया जाता है। वहीं, केंद्र को मिले अतिरिक्त दूध को परिवार की सहमति से ऐसे बच्चों को दिया जाता है जिनकी मां नहीं है या किन्हीं कारणों से महिलाओं का दूध नहीं बन रहा। करीब दस फीसदी माताएं अतिरिक्त दूध को दान करती हैं। डॉक्टरों का कहना है कि पहले छह माह में हर बच्चे को केवल मां का दूध ही देना चाहिए। यह उसके शारीरिक के साथ मानसिक विकास के लिए सबसे जरूरी है।
सफदरजंग भी बनाएगा मिल्क बैंक
आने वाले दिनों में सफदरजंग अस्पताल भी संस्थान में वात्सल्य-मातृ अमृत कोष (मिल्क बैंक) बनाने की तैयारी कर रहा है। इसकी मदद से उन बच्चों को भी स्तनपान का लाभ मिल सकेगा जिनके बच्चे स्तनपान करने में सक्षम नहीं है। या उक्त बच्चे की मां का किन्हीं कारणों से दूध नहीं बन पा रहा। इस कोष में मां का दूध लेने के दौरान पूरी जांच होती है। इनमें देखा जाता है कि दूध के माध्यम से बच्चे को कोई इंफेक्शन तो नहीं मिल रहा।

पहले घंटे में स्तनपान का आंकड़ा आधा

सफदरजंग अस्पताल में बाल रोग विभाग के प्रमुख डॉ. रतन गुप्ता ने बताया कि देश में करीब 88 फीसदी डिलीवरी अस्पताल सहित अन्य स्वास्थ्य केंद्रों में होती है, लेकिन पहले एक घंटे में बच्चे को स्तनपान करवाने का आंकड़ा करीब 44 फीसदी है। सफदरजंग इसमें सुधार के लिए प्रयास कर रहा है। अस्पताल की कोशिश है कि अस्पताल में पैदा होने वाले हर बच्चे को पहले घंटे में उसकी मां का दूध मिले। यहां हर दिन 60-80 डिलीवरी होती हैं। उनका कहना कहना है कि देश में करीब 64 फीसदी बच्चों को पूरे छह माह स्तनपान मिलता है। इसमें भी सुधार की जरूरत है।

डॉक्टरों का कहना है कि बच्चा पैदा होते ही पहले घंटे में स्तनपान जरूरी है। पहले घंटे में मां से बच्चे को गाढ़ा पीला दूध (कोलोस्ट्रम) मिलता है। इसकी मदद से बच्चे को भविष्य में कुपोषण के साथ दूसरी बीमारियों के होने का खतरा टल जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देश के तहत बच्चा पैदा होते ही उसे मां की छाती पर रखने का निर्देश हैं ताकि मां उसे अपना स्तनपान करवा सकें।

महिला की होती है स्क्रीनिंग
मशीन की मदद से प्री मैच्योर बेबी की माताओं से दूध लेने से पहले उनकी स्क्रीनिंग होती है। इस दौरान देखा जाता है कि उक्त महिला को पहले कोई बड़ी बीमारी तो नहीं रही। साथ ही पहले कभी खून तो नहीं चढ़ाया गया। कभी कोई इंफेक्शन तो नहीं हुआ। शरीर पर कोई टैटू तो नहीं बनाया गया है। इसके अलावा कोई दूसरी परेशानी तो नहीं रही।

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