Saturday, January 18, 2025
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IPS अधिकारी को राहत देने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती; अतुल सुभाष के बेटे की कस्टडी पर 20 को सुनवाई

बिहार पुलिस की एक महिला उपाधीक्षक ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। उन्होंने पटना हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ अपील की है, जिसमें एक आईपीएस अधिकारी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया गया था। महिला ने इस आईपीएस अधिकारी पर आरोप लगाया था कि उसने उसे शादी का झांसा देकर दुष्कर्म किया था।

न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्ला की पीठ पुलिस उपाधीक्षक की अपील पर सोमवार को सुनवाई कर सकती है। अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि 19 सितंबर, 2024 को जारी हाईकोर्ट का आदेश मामले के तथ्यों से परे और तय कानून के विपरीत है।

यह मामला 29 दिसंबर 2014 को तब सामने आया था, जब महिला ने बिहार के कैमूर के महिला पुलिस स्टेशन में आईपीएस अधिकारी पुष्कर आनंद और उनके माता-पिता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी। आनंद पर दुष्कर्म और आपराधिक धमकी सहित अन्य गंभीर अपराधों के लिए मामला दर्ज किया गया था, जबकि उसके माता-पिता पर अपराध को बढ़ावा देने के लिए मामला दर्ज किया गया था।

महिला ने आरोप लगाया था कि वह जब भभुआ में पुलिस उपाधीक्षक के रूप में तैनात हुई थी, तब आनंद ने सोशल मीडिया पर उससे दोस्ती की और शादी करने की इच्छा जताई। इसके बाद, दोनों के बीच शारीरिक संबंध बने, लेकिन बाद में शादी नहीं हो पाई क्योंकि कुंडलियों का मिलान नहीं हुआ।

महिला ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा है कि पटना हाईकोर्ट ने इस मामले को ठीक से नहीं समझा। अदालत ने यह भी नहीं देखा कि एफआईआर और चार्जशीट में दर्ज आरोपों से यह साबित होता है कि अपराध हुआ था।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि महिला ने खुद इस रिश्ते को शुरू किया था और दोनों के बीच जो शारीरिक संबंध बने, वह उनकी मर्जी से थे। इस पर एफआईआर दर्ज करवाना उचित नहीं था।

पत्नी के खिलाफ उत्पीड़न का आरोप लगाकर आत्महत्या करने वाले बंगलूरू के इंजीनियर अतुल सुभाष की मां की याचिका पर उच्चतम न्यायालय सोमवार को सुनवाई करेगा। अतुल सुभाष की मां ने अपने पोते की कस्टडी की मांग करते हुए याचिका दायर की है।

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ अंजू देवी की याचिका पर सुनवाई कर सकती है, जिन्होंने अपने चार वर्षीय पोते की कस्टडी की मांग करते हुए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की है।

पिछले साल नौ दिसंबर को बंगलूरू के मुन्नेकोलालु में सुभाष (34) अपने घर में फांसी पर लटके मिले थे। सुभाष ने कथित तौर पर लंबे ‘सुसाइड नोट’ में उन्होंने पत्नी और ससुराल वालों को यह कदम उठाने के लिए मजबूर करने का दोषी ठहराया था। पिछली सुनवाई के दौरान, सुभाष की अलग रह रही पत्नी निकिता सिंघानिया की ओर से पेश वकील ने शीर्ष अदालत को बताया था कि बच्चा हरियाणा के एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ रहा है।

देवी का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता कुमार दुष्यंत सिंह ने बच्चे की कस्टडी की मांग की थी और आरोप लगाया था कि उनकी अलग रह रही बहू ने बच्चे का पता उनसे छिपा रखा है। उन्होंने तर्क दिया था कि छह वर्ष से कम आयु के बच्चे को बोर्डिंग स्कूल में नहीं भेजा जाना चाहिए तथा उन्होंने उन तस्वीरों का हवाला दिया था, जिनमें दिखाया गया था कि जब बच्चा केवल कुछ साल का था, तब याचिकाकर्ता उससे बातचीत कर रही थी।

इसके बाद न्यायालय ने 20 जनवरी को अगली सुनवाई पर बच्चे को अदालत में पेश करने का निर्देश दिया था और कहा था कि मामले का फैसला ‘मीडिया ट्रायल’ (मीडिया में हो रही बहस) के आधार पर नहीं किया जा सकता।

बंगलूरू की एक अदालत ने चार जनवरी को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में सुभाष की अलग रह रही पत्नी, उसकी मां निशा सिंघानिया और भाई अनुराग सिंघानिया को जमानत दे दी थी।

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