फिल्म ‘छावा’ को सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट पाने के लिए कुछ बदलावों की आवश्यकता पड़ी। फिल्म के संवादों में सुधार किया गया है। साथ ही कुछ शब्दों के स्थान पर नए शब्दों का प्रयोग किया गया है।
फिल्म ‘छावा’ केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) की ओर से पास हो गई है। हालांकि, यू/ए सर्टिफिकेट लेना फिल्म के लिए आसान नहीं रहा। कुछ आवश्यक बदलाव के बाद ही फिल्म की रिलीज का रास्ता साफ हो सका है।
छावा से आपत्तिजनक शब्दों को हटाया गया
एक संवाद जिसमें ‘मुगल सल्तनत का जहर’ कहा गया था, उसे बदलकर ‘उस समय, कई शासक और सल्तनत खुद को जिंदा रखने की कोशिश कर रहे थे’ कर दिया गया। इसी तरह ‘खून तो आखिर मुगलों का ही है’ को बदलकर ‘खून तो है औरंग का ही’ कर दिया गया। इसके अलावा कुछ आपत्तिजनक शब्दों को म्यूट किया गया है। साथ ही, ‘आमीन’ के स्थान पर ‘जय भवानी’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है।
सीन पर भी चली कैंची
फिल्म के पहले भाग में एक संवाद को भी बदल दिया गया। इसके अलावा जिस दृश्य में मराठा योद्धाओं को साड़ी में दिखाया गया था उसे हटा दिया गया है। यह बदलाव सीबीएफ की मांग के अनुसार किए गए हैं। इसके अलावा कुछ आयु संबंधी बदलाव भी किए गए। जैसे कि ‘16 साल’ को ‘14 साल’, ‘22 साल का लड़का’ को ‘24 साल का लड़का’ और ‘9 साल’ को ‘कई साल’ में बदल दिया गया।
ऑडियो-टेक्स्ट डिस्क्लेमर भी डालने को कहा गया
सेंसर बोर्ड ने निर्माताओं से एक ऑडियो-टेक्स्ट डिस्क्लेमर डालने को कहा है, जिसमें उस पुस्तक का नाम बताया जाए जिससे यह फिल्म रूपांतरित की गई है और यह भी बताया जाए कि इसका उद्देश्य किसी को बदनाम करना या ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत करना नहीं है।
इतनी लंबी बनी फिल्म
इन सभी बदलावों के बाद ही फिल्म को सेंसर प्रमाणपत्र मिल सका है। सेंसर बोर्ड की ओर से दिए गए सर्टिफिकेट में फिल्म की कुल लंबाई 161.50 मिनट, यानी 2 घंटे 41 मिनट 50 सेकंड बताई गई है। इस फिल्म का निर्देशन ‘लक्ष्मण उतेकर’ ने किया है। इससे पहले वह ‘लुका छुपी’ (2019) और ‘जरा हटके जरा बचके’ (2023) जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके है। अब यह फिल्म 14 फरवरी को सिनेमाघरों में रिलीज होने के लिए तैयार है।