न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि वह दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते हैं क्योंकि यह एक नीतिगत फैसला है।सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें जेलों में निरुद्ध विचाराधीन कैदी सप्ताह में दो बार ही अपने दोस्त, रिश्तेदार या फिर कानूनी सलाहकारों से मिल सकेंगे। शीर्ष अदालत ने कहा कि विचाराधीन कैदियों और कैदियों की संख्या को ध्यान में रखते हुए जेल में कैदियों के परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों, दोस्तों और कानूनी सलाहकारों द्वारा सप्ताह में दो बार मिलने की संख्या को सीमित करने का फैसला लिया गया है, जिसे पूरी तरह से मनमाना नहीं कहा जा सकता है।
न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि वह दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते हैं क्योंकि यह एक नीतिगत फैसला है।
यह है मामला
गौरतलब है, पिछले साल 16 फरवरी को दिल्ली सरकार के निर्णय को उच्च न्यायालय ने सही ठहराया था। न्यायालय ने कहा था कि सप्ताह में दो बार मिलने की संख्या को सीमित करने का दिल्ली सरकार का फैसला सही है। इसे बदला जाना उचित नहीं है। मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने कहा था कि जेलों में उपलब्ध सुविधाओं, कर्मचारियों की उपलब्धता और विचाराधीन कैदियों की संख्या पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद निर्णय लिया गया है।अदालत ने दिल्ली जेल नियम, 2018 के नियम 585 को चुनौती देने वाले दो अधिवक्ताओं द्वारा दायर एक जनहित याचिका का निपटारा करते हुए यह फैसला सुनाया गया था। नियम 585 में कहा गया है कि प्रत्येक कैदी को अपील की तैयारी करने, जमानत प्राप्त करने या अपनी संपत्ति और पारिवारिक मामलों के प्रबंधन की व्यवस्था करने के लिए अपने परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों, दोस्तों और कानूनी सलाहकारों से मिलने या संवाद करने के लिए उचित सुविधाएं दी जाएंगी।
वकील जय अनंत देहाद्रई की याचिका में नियमों में संशोधन की मांग की गई थी। उन्होंने अंतरिम तौर पर अनुरोध किया था कि कानूनी वकील सप्ताह में दो बार से अधिक दिल्ली की जेलों में अपने मुवक्किलों से मिलने जा सकें।