विशेषज्ञों की मानें तो पानी में फ्लोरोइड की मात्रा बढ़ने से न रंग में कोई बदलाव आता है और न ही स्वाद में कोई अंतर दिखता है। ऐसे में इसकी पहचान करना मुश्किल हो जाता है। इस समस्या से दिल्ली-एनसीआर भी अछूता नहीं है। पानी में अधिक फ्लोराइड की उपस्थिति के कारण दांत, हड्डियों से संबंधित परेशानी के अलावा किडनी सहित शरीर के दूसरे अंग भी रोगी हो रहे हैं।
फ्लोराइड की समस्या से मुक्ति दिलाने के लिए बिहार के शेख पुरा और नवादा जिले में अभियान चलाया जा रहा है। इसके तहत 40 हैंडपंप पर फिल्टर लगाए गए हैं। इनकी मदद से 10 हजार लोगों को पीने का पानी उपलब्ध करवाया जा रहा है। यहां फिल्टर लगाने से पहले पानी में फ्लोराइड की मात्रा 10 से 12 मिलीग्राम प्रति लीटर थी। फिल्टर लगाने के बाद यह घटकर 1.5 या इससे कम पहुंच गई है। कई जगहों पर यह मात्रा 0.5 मिलीग्राम प्रति लीटर तक हैं। जो मानक के अनुसार है। इस फिल्टर को वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने विकसित किया है। इसकी कीमत एक लाख रुपये से कम है। फिल्टर लगने के बाद दूसरे गांव के लोग भी फिल्टर की मांग करने लगे हैं। इन फिल्टर को चलाने के लिए आशा वर्कर को ट्रेनिंग दी गई है।
शारीरिक परिश्रम करने वालों में ज्यादा परेशानी
डॉक्टरों का कहना है कि पेयजल में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने से शारीरिक परिश्रम करने वालों को ज्यादा परेशानी होती है। ऐसे लोगों को ज्यादा पानी पीना पड़ता है, लेकिन पसीने या पेशाब के रास्ते फ्लोराइड शरीर से बाहर नहीं निकल पाता। ऐसे में यह शरीर में जमा होता रहता है और रोग उत्पन करता है।
– हवा-खाना भी बढ़ा रही समस्या: डॉ. जावेद के कादरी ने कहा कि विशेषज्ञों को आशंका है कि हवा और खाने से भी शरीर में फ्लोराइड पहुंच रहा है। इसे लेकर शोध कर देखा जा रहा है कि जिन क्षेत्रों में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा है वहां के हवा और उगने वाले खाद्यान्न में इसकी मात्रा पाई जा रही है।
– भारत में की जाएगी प्रभावित क्षेत्र की मैपिंग: भू-जल दोहन और जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रहे फ्लोराइड की समस्या का सही आंकड़ा हासिल करने के लिए पूरे भारत मैपिंग की जाएगी। इसे लेकर विशेषज्ञों ने सरकार को सुझाव दिया है।
पेयजल में फ्लोराइड से हो सकती है यह समस्या
– दांत कमजोर या टूटना
– हड्डियां कमजोर या डेढ़ा-मेढ़ा होना
– किडनी से जुड़े रोग
– न्यूरो डिसऑर्डर
– महिलाओं में प्रजनन घटना
– कुपोषण