पंजाब, हरियाणा व हिमाचल के दूर -दराज के ग्रामीण इलाकों की अस्पताल से दूरी कोसों में है, जिस कारण लोग इलाज करवाने में कतराते थे।
अब तक करीब 65 कैंप का किया आयोजन
डॉ. जयमंती बक्शी अन्य साथी डॉक्टरों के साथ मिलकर करीब 65 कैंप का आयोजन कर चुके हैं। कैंप में बहरापन की जांच के अतिरिक्त बोलने में दिक्कत, आटिज्म, मानसिक विकलांगता और वृद्धावस्था में होने वाली बीमारियों की जांच की जाती है।
डॉ. जयमंती ने बताया कि हम कॉल ऑफ ड्यूटी के दौरान ग्रामीण इलाकों में तंबाकू और सुपारी के कारण सिर और गर्दन कैंसर को लेकर भी लगातार अभियान चलाया जा रहे है।
एक मां का संघर्ष देख… ग्रामीण क्षेत्रों में इलाज देने का उत्साह हुआ दोगुना
ओटोलरींगोलाजी विभाग के डॉ. धर्मवीर ने बताया कि वह पिछले करीब 35 सालों से पीजीआइ में सेवा दे रहे थे। 35 साल के करियर में ऐसे बहुत सारे मरीजों की ऐसे कहानियां जो अंदर तक घात करने वाली थी।
उन्होंने एक किस्सा साझा करते हुए बताया कि पंजाब के दूर -दराज के इलाके से एक मां अपनी बेटी के बहरापन का इलाज करवाने आती थी।
वह जिस क्षेत्र से आती थी वह से कई किलोमीटर तक बस की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। बस लेने के लिए मां अपनी दोनों बेटियों के साथ अखबार बांटने वाली गाड़ी में सवार होकर तड़के की सुबह बस स्टैंड तक आती थी।
फिर वह से बस पकड़कर पीजीआइ इलाज के लिए आती थी। ऐसी तकलीफ देह कहानियां सुनने के बाद ग्रामीण इलाकों तक जाकर इलाज करने का उत्साह दोगुना हो जाता है।
ग्रामीण इलाकों में 32.81 प्रतिशत लोग श्रवण हानि से प्रभावित
एक सर्वे के अनुसार, ग्रामीण इलाकों में 32.81 प्रतिशत लोग श्रवण हानि से प्रभावित हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 6.31 प्रतिशत है। आर्थिक तंगी और जागरूकता की कमी के कारण अधिकांश लोग उपचार नहीं ले पाते। नेशनल रिहैबिलिटेशन इंस्टिट्यूट (एनआरआई) और पीजीआइ ने मिलकर मोबाइल क्लिनिक और जागरूकता शिविरों के जरिए इन समस्याओं का समाधान निकालने का प्रयास कर रही है।