पेरिस ओलंपिक 2024 में मनु का प्रदर्शन
26 जुलाई से शुरू हुए पेरिस ओलंपिक में 10 मीटर एयर पिस्टल वीमेंस इवेंट में मनु भाकर ने भारत को पेरिस ओलिंपिक का पहला कांस्य मेडल दिलाया। जिसके बाद वह शूटिंग में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला निशानेबाज बनीं।
अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी है मनु
साल 2017 में मनु ने केरल में नेशनल चैंपियनशिप में नौ स्वर्ण पदक जीतकर नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया था। इसी वर्ष एशियाई जूनियर चैंपियनशिप में भाकर ने रजत पदक अपने नाम किया, मैक्सिको के गुआदालाजरा में 2018 अंतरराष्ट्रीय स्पोर्ट शूटिंग वर्ल्ड कप के 10 मीटर एयर पिस्टल फ़ाइनल में, भाकर ने दो बार के चैंपियन अलेजांद्रा ज़वाला को हराया।इस जीत से वे वर्ल्ड कप में स्वर्ण पदक जीतने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय बन गईं। साल 2018 में आईएसएसएफ़ जूनियर विश्व कप में भी डबल स्वर्ण जीता, उसी वर्ष, 16 साल की उम्र में, उन्होंने 2018 राष्ट्रमंडल खेलों में महिलाओं की 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता, अपने स्कोर के साथ साथ उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में एक नया रिकार्ड भी स्थापित किया।
मई 2019 में, मनु ने म्यूनिख आईएसएसएफ़ विश्व कप में चौथे स्थान पर रहने के साथ 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में 2021 टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया। अगस्त 2020 में मनु भाकर को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने एक वर्चुअल पुरस्कार समारोह में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया था। अब उन्हें खेल रत्न से सम्मानित किया जाएगा।
संयुक्त परिवार की ताकत से ओलिंपिक तक पहुंचे अमन
गांव बिरोहड़ निवासी पहलवान अमन सहरावत का ओलिंपिक तक का सफर बहुत मुश्किलों भरा रहा है। अमन ने बचपन में ही माता-पिता को खो दिया था। पहले अमन की मां का हार्टअटैक से निधन हो गया था, तब उनकी उम्र 10 साल थी। फिर लगभग एक साल बाद उनके पिता भी चल बसे।
इसके बाद अमन और उनकी छोटी बहन पूजा सहरावत को एक मौसी की देखभाल में छोड़ दिया गया। माता-पिता की मृत्यु के बाद अमन गंभीर अवसाद से जूझ रहे थे, ऐसे में उनके दादा मांगेराम सहरावत ने उन्हें संभाला और इससे उबरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जब धीरे-धीरे अमन ठीक होने लगे तो उन्होंने कुश्ती में अपना जौहर दिखाना शुरू कर दिया। एक संयुक्त परिवार में शामिल सभी स्वजनों ने उसे इस मुकाम तक पहुंचने में हर संभव मदद की। जिसके बूते वे ओलिंपिक का हिस्सा बन पाए।
बता दें कि एक सादा जीवन जीने वाले अमन सहरावत ने छत्रसाल स्टेडियम के अपने कक्ष में विशेष रूप से ऐसी लाइनों को स्थान दिया है, जिससे उन्हें रोजना आगे बढ़ने और मेडल जीतने की प्रेरणा मिलती है।