पाकिस्तान और चीन के साथ चार युद्ध लड़ने वाले पूर्व सैनिक हवलदार बलदेव सिंह का मंगलवार को राजौरी जिला में उनके निवास पर निधन हो गया।
वह 93 वर्ष के थे और पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। उन्होंने ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में बाल सैनिक के तौर पर कार्य करते हुए 1947-48 में पाकिस्तानी सेना व कबाइलियों के दांत खट्टे करने में अहम भूमिका निभाई।
चीन-पाकिस्तान के युद्ध में दे चुके थे सेवाएं
इसके बाद वह सेना में भर्ती हो गए और उन्होंने चीन के साथ 1962, पाकिस्तान के खिलाफ 1965 और सेवानिवृत्त होने के बाद भी 1971 के युद्ध में अपनी सेवाएं दीं।अपने पूरे जीवन में देश की सेवा व बहादुरी के लिए उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी सहित देश के कई बड़े नेताओं की ओर से सम्मानित किया जा चुका है। इस बीच, जिला की नौशहरा तहसील में उनका सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।
ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में किया था काम
27 सितंबर, 1931 को नौशहरा के नौनिहाल गांव में जन्मे बलदेव सिंह महज 16 वर्ष के थे जब उन्होंने वर्ष 1947-48 में नौशहरा और झंगड़ की लड़ाई के दौरान 50 पैरा ब्रिगेड के कमांडर ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में बाल सेना में स्वेच्छा से शामिल होने का फैसला किया था।
12 से 16 वर्ष की आयु के स्थानीय लड़कों के समूह (बाल सेना) ने इस युद्ध के महत्वपूर्ण क्षणों में भारतीय सेना के लिए गोला-बारूद एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का काम किया
पंडित नेहरू ने भी किया था सम्मानित
उनकी बहादुरी के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने बाल सैनिकों को सम्मानित कर सेना में शामिल होने का अवसर दिया। बलदेव सिंह 14 नवंबर, 1950 को सेना में भर्ती हुए और तीन दशकों तक समर्पण और वीरता के साथ देश की सेवा की।
चीन के साथ वर्ष 1962 और पाकिस्तान के साथ 1965 के युद्ध लड़ने के बाद वह अक्टूबर 1969 को सेवानिवृत्त हुए। इसके बावजूद बलदेव सिंह को 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान वापस बुलाया गया और उन्होंने अतिरिक्त आठ महीने 11 जाट बटालियन (25 इन्फैंट्री डिवीजन) में सेवाएं दीं।
बता दें के तीन वर्ष पहले जवानों के साथ दीपावली मनाने के लिए पीएम मोदी नौशहरा आए थे। पीएम ने बलदेव सिंह के साथ बातचीत की थी। बलदेव से बहादुरी के किस्सा सुनने के बाद प्रधानमंत्री ने उन्हें सम्मानित भी किया था।