फरीदाबाद में दर्ज केस में आरोपी ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। याची ने कहा था कि पीड़िता की उम्र के सबूत के तौर पर उसका आधार कार्ड कोर्ट में पेश किया जाए। इस पर ट्रायल कोर्ट ने नामंजूरी जताई थी। हरियाणा सरकार ने भी इसका विरोध किया था।
बच्चों से यौन अपराध संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो एक्ट) के मामले में आरोपी को अपने बचाव में पीड़िता के आधार से जुड़ी जानकारी इस्तेमाल करने का अधिकार है।
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पीड़िता को दुष्कर्म के समय बालिग साबित करने के लिए भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के अधिकारी को रिकॉर्ड के साथ ट्रायल कोर्ट में पेश करने की मांग को स्वीकार करते हुए यह आदेश जारी किया है।
याचिका दाखिल करते हुए याची ने बताया कि उसके खिलाफ दुष्कर्म व पॉक्सो एक्ट में फरीदाबाद में केस दर्ज किया गया था। याची ने बताया कि पीड़िता ने अपना जन्म प्रमाण पत्र 2017 में बनवाया है जिसके अनुसार उसकी जन्म तिथि 31 मई 2001 है जबकि उसके आधार कार्ड पर जन्म तिथि एक जनवरी 1999 है। ऐसे में पीड़िता के आधार कार्ड के दस्तावेज कोर्ट में पेश किए जाएं, जो उसने कार्ड बनवाते समय भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण में जमा करवाए थे।
पीड़िता के बालिग साबित होने पर याची के खिलाफ पॉक्सो एक्ट तहत मामला नहीं बनता है। ट्रायल कोर्ट यह मांग ठुकरा चुकी है ऐसे में याची को हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी। हरियाणा सरकार ने याची का मांग का विरोध करते हुए कहा कि आधार कार्ड का उपयोग जन्म तिथि को सत्यापित करने के लिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह स्व-घोषित जानकारी पर आधारित है।हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि भले ही आधार कार्ड धारक के जन्म तिथि के प्रमाण के रूप में उपयोग में नहीं लाया जा सकता लेकिन आरोपी को अपने बचाव में साक्ष्य पेश करने के लिए पर्याप्त अवसर दिया जाना चाहिए। अपने बचाव में साक्ष्य जोड़ना याची का मूल्यवान अधिकार है और इससे इनकार करना निष्पक्ष सुनवाई से इनकार करना जैसा होगा। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता अपने मामले को साबित करने के लिए यूआईडीएआई से गवाह को बुलाना चाहता है। नतीजतन हाईकोर्ट ने संबंधित गवाह को बुलाकर रिकॉर्ड पेश करने का आदेश दिया है।