पंजाब राज्य महिला कमिश्न ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के उस फ़ैसले की प्रशंसा की है जिसमें कहा गया है कि गर्भवती और दूध पिलाने वाली मां को गंभीर अपराधों वाले मामलों में भी तरस के आधार पर जेल से रिहाई दी जानी चाहिए।
चेयरपर्सन राज लाली गिल ने माननीय जस्टिस अनूप चितकारा के फ़ैसले का पुरज़ोर समर्थन करते इसको जेल में बंद औरतों के अधिकारों और सम्मान को बरकरार रखने के लिए कमीशन के यत्नों की दिशा में अहम कदम बताया है।
चेयरपर्सन राज लाली गिल ने टिप्पणी की कि माननीय जस्टिस चितकारा का फ़ैसला गर्भवती और दूध पिलाने वाली मां के मौलिक अधिकारों की चौकीदारी और सम्मान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि यह फ़ैसला एक गर्भवती और दूध पिलाने वाली मां की मौलिक ज़रूरतों को समझता है और मां और उनके बच्चों के स्वास्थ्य और तंदरुस्ती को प्राथमिकता देता है।
हाई कोर्ट के फ़ैसले में कहा गया है कि गंभीर मामलों में भी गर्भवती और माँ बनने वाली औरतों को प्रसूते के बाद एक साल तक की अस्थायी ज़मानत या उनकी सजा को निरस्त किया जाना चाहिए। यह फ़ैसला तब आया जब माननीय जस्टिस चितकारा ने पिछले साल जुलाई से एनडीपीएस एक्ट के अंतर्गत जेल में बंद 24 वर्षीय औरत, जो पाँच महीनों की गर्भवती है, को अंतरिम ज़मानत की मंज़ूरी दी।
राज लाली गिल ने ऐलान किया कि हिरासत में बंद औरतों के हालातों में तुरंत सुधार की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए पंजाब राज्य महिला कमिश्न की तरफ से जल्दी ही राज्य की जेलों का दौरा किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि हमें महिला कैदियों को हालातों का जायज़ा लेने और यह यकीनी बनाने की ज़रूरत है कि उनके अधिकारों की चौकीदारी करते उनके मान- सम्मान को बरकरार रखा जाये। उन्होंने आगे कहा कि यह दौरे हमें उक्त महिला कैदियों की ज़रूरतों को बढिया ढंग से समझने और ज़रुरी सुधारों की वकालत करने में मदद करेंगे। उन्होंने बताया कि गर्भवती महिला कैदियों और उनके बच्चों की सूची मुहैया करवाने के लिए जेल प्रशासन को पहले ही लिखा जा चुका है।
उन्होंने कहा कि पंजाब राज्य महिला कमिश्न औरतों के अधिकारों की वकालत करने के साथ- साथ न्याय प्रणाली में उनके लिए दया- भावना को यकीनी बनाने के लिए वचनबद्ध है।